हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत फातेमा ज़हेरा स.स. की शहादत के मौके पर हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शोघकर्ता हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सय्यद क़ासिम अली रिज़वी से विशेष इंटरव्यू:
हौज़ा न्यूज़ : हज़रत ज़हरा (स) के नज़रिए में "विलायत" की क्या स्थिति थी? क्या यह केवल एक राजनीतिक मुद्दा था या एक धार्मिक कर्तव्य?
मौलाना सैयद क़ासिम अली रिज़वी : हज़रत ज़हेरा (स.ल.) की दृष्टि में "विलायत" केवल शासन का मुद्दा नहीं था, बल्कि यह ईमान और धर्म की नींव थी। कुरआन मजीद में अल्लाह तआला फरमाता है:बेशक तुम्हारा वाली (संरक्षक) तो बस अल्लाह ही है और उसका रसूल और वह ईमान वाले लोग हैं जो नमाज़ कायम करते हैं और रुकू की हालत में ज़कात अदा करते हैं।(सूरा अल-माइदा, 5:55
शिया व्याख्याकारों के अनुसार यह आयत अमीरुल मोमिनीन अली अ.स. के संबंध में उतरी थी। हज़रत ज़हरा (स.ल.) ने इसी विलायत की सुरक्षा और रक्षा को अपना लक्ष्य बनाया। आप (स.ल.) के लिए "विलायत"दीन की आत्मा थी, जिसके बिना इस्लाम की व्यवस्था अधूरी रह जाती।
हौज़ा न्यूज़ : हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.ल.) ने "विलायत की रक्षा" के लिए कौन-से व्यावहारिक कदम उठाए?
मौलाना सैयद क़ासिम अली रिज़वी : आप (स.ल.) ने न केवल अपने दिल से बल्कि अपने वचन और कर्म दोनों से ही विलायत-ए-अली (अ.स.) का समर्थन किया। रसूलुल्लाह (स) के स्वर्गवास के बाद जब सकीफ़ा में विलायत के अधिकार का हनन हुआ, तो हज़रत ज़हरा स.ल.ने चुप्पी को पाप समझा।
आप (स.ल.) ने मदीना में घर-घर जाकर अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) की सच्चाई को समझाया।
मस्जिद-ए-नबवी में आप (स.ल.) ने खुतबा-ए-फ़दकिय्या दिया जो केवल फ़दक की मांग नहीं, बल्कि विलायत-ए-अली (अ.स.) की घोषणा था।आप (स) ने फरमाया:अगर तुमने अली (अ) का अनुसरण किया होता, तो तुम कभी गुमराही में नहीं पड़ते।यह रक्षा केवल शब्दों की नहीं, बल्कि एक ईमानी जिहाद था।
हौज़ा न्यूज़ : क्या कुरआन में हज़रत ज़हेरा (स.ल.) द्वारा विलायत की रक्षा की कोई आध्यात्मिक पृष्ठभूमि मिलती है?
मौलाना सैयद क़ासिम अली रिज़वी : हाँ, कुरआन की कई आयतें हज़रत ज़हरा (स.ल.) और अहल-ए-बैत (अ.स.) के अधिकार और विलायत की ओर संकेत करती हैं। उदाहरण के लिए:
إِنَّمَا يُرِيدُ اللَّهُ لِيُذْهِبَ عَنكُمُ الرِّجْسَ أَهْلَ الْبَيْتِ وَيُطَهِّرَكُمْ تَطْهِيرًا
(سورہ احزاب 33:33)
बेशक अल्लाह का इरादा तो बस यह है कि हे अहल-ए-बैत! तुमसे हर प्रकार की गंदगी को दूर रखे और तुम्हें पूर्णत पवित्र करे।
यह आयत-ए-तत्हीर हज़रत ज़हरा (स) और अहल-ए-बैत (अ) की निष्पापता और पवित्रता का प्रमाण है। चूंकि अल्लाह ने उन्हें पवित्र ठहराया है, इसलिए उनकी विलायत और मार्गदर्शन ही उम्मत के लिए सही मार्ग है। हज़रत ज़हरा (स) ने इसी सच्चाई की रक्षा की पवित्र और निष्पाप ही उम्मत के वली और मार्गदर्शक बनने के योग्य हैं।
हौज़ा न्यूज़ : हज़रत ज़हेरा स.ल के बलिदान को "विलायत की रक्षा" के साथ कैसे जोड़ा जाता है?
मौलाना सैयद क़ासिम अली रिज़वी : हज़रत ज़हरा स.ल. की शहादत स्वयं विलायत की गवाही है। आप (स) ने केवल ज़बान से ही नहीं, बल्कि अपने प्राणों के माध्यम से भी विलायत की रक्षा की। जब अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) के अधिकार का हनन हुआ, तो आप (स) ने फरमाया:अल्लाह की कसम! यदि अली (अ) को छोड़ दिया गया, तो तुम्हारे मामले कभी ठीक नहीं होंगे।और इतिहास गवाह है कि आप (स.ल.) ने अत्याचार सहा, किंतु चुप्पी नहीं अपनाई। आप (स) के घर पर हमला, आपके घायल होने और फिर आपकी शहादत यह सब विलायत की रक्षा की कीमत थी।
हौज़ा न्यूज़ : आज के मुस्लमान हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.ल.) द्वारा विलायत की रक्षा से क्या सबक ले सकते हैं?
मौलाना सैयद क़ासिम अली रिज़वी : आज हमें हज़रत ज़हरा (स.ल.) की तरह सत्य के साथ खड़े होने का सबक मिलता है। विलायत केवल अली (अ.स) की ही नहीं, बल्कि ईश्वरीय मार्गदर्शन प्रणाली का प्रतीक है। हज़रत (स.ल.) ने दिखाया कि जहाँ सत्य की विलायत खतरे में हो, वहाँ चुप्पी गुनाह है।
आज भी, यदि हम अहल-ए-बैत (अ) की विलायत को समझें और उस पर अमल करें, तो कुरआन की आत्मा जीवित हो उठती है, क्योंकि रसूलुल्लाह (स) ने फरमाया,अली (अ.स.) कुरआन के साथ हैं और कुरआन अली (अ.स.) के साथ है। यह दोनों कयामत तक एक-दूसरे से अलग नहीं होंगे।(हदीस-ए-सकलैन)
हौज़ा न्यूज़ : बहुत बहुत धन्यवाद। हज़रत ज़हरा (स) के जीवन और संघर्ष से मिलने वाली यह शिक्षा निश्चित रूप से हम सभी के लिए मार्गदर्शक है।
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